दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदल देंगे स्वामी विवेकानंद
के बताए ये उपाय
खुद पर विश्वास करो- स्वामी विवेकानंद के मुताबिक आज के दौर में नास्तिक वह है, जिसे खुद पर भरोसा नहीं, न कि केवल वो जो भगवान को न मानें। यानी आत्मविश्वास सफलता का सबसे बड़ा सूत्र है। आत्मविश्वास का भी सही मतलब यह है कि खुद में मौजूद भगवान के अलावा मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से पैदा ‘मैं’ पर भी भरोसा रखें तो बेहतर है।
स्वामीजी ने इस बात को सरलता से समझने और खुद पर भरोसा पैदा करने के लिए तरीके भी बताए। ये हैं-
स्वामीजी ने इस बात को सरलता से समझने और खुद पर भरोसा पैदा करने के लिए तरीके भी बताए। ये हैं-
ताकतवर बनो- स्वामी विवेकानंद ने शरीर की ताकत को मन के साथ आध्यात्मिक तौर पर मजबूत बनाने व आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जरूरी माना। इसके लिए उन्होंने यहां तक कहा कि कृष्ण या गीता की ज्ञान की शक्ति को समझने के लिए पहले शरीर को मजबूत बनाएं। इसके लिए गीता पढऩे से पहले फुटबाल खेलकर ताकतवर बनने की नसीहत दी। ताकि फौलादी बन व मजबूत संकल्प के साथ धर्म समझ सकें व अधर्म का मुकाबला कर सकें।
खुद को कमजोर या पापी न मानें- आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए जरूरी है कि कभी भी ऐसी सोच खुद के लिए न बनाएं कि मैं परेशान, कमजोर, पापी, दु:खी, शक्तिहीन हूं या कुछ भी करने की ताकत नहीं रखता। क्योंकि वेदान्त भूल को मानता है, पाप को नहीं और ऐसी बातें सोचना भी भूल ही है। इसलिए खुद को शेर मानकर जिएं न कि भेड़।
उम्मीद न छोड़ें- निराश न हों। हमेशा खुश रहें व मुस्कराते रहना देव उपासना-प्रार्थना की भी तुलना में भगवान के ज्यादा करीब ले जाता है।
निडरता- स्वामी विवेकानंद के मुताबिक हर इंसान की एक बार ही मृत्यु होती है। इसलिए मेरा कोई बड़ा काम करने के लिए जन्म हुआ है, यह सोचकर बिना किसी से डरे, बिना किसी कायरता के चाहे वज्रपात भी हो तो अपने काम में साहस के साथ लगे रहें।
अपने पैरों पर खड़े हों- किस्मत के भरोसे न बैठे, बल्कि पुरुषार्थ यानी मेहनत के दम पर खुद की किस्मत बनाएं। खडे हो जाओ, साहसी बनो और शकितमान बनो। इस सूत्र वाक्य के जरिए यही रास्ता बताया कि खुद जिम्मेदारी उठाओ। सारी शक्ति खुद के पास है, इसलिए खुद ही अपने सबसे बड़े मददगार हो। दरअसल, जो आज है वह पिछले जन्म में किए कामों को नतीजा है। इसलिए बेहतर कल के लिए आज के काम नियत करेंगे। इस तरह अपना भविष्य बनाना आपके हाथ में हैं।
संयम- इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है। इंसान बनने के लिए सबसे पहला कदम है- खुद पर काबू रखना यानी संयम। ऐसा करने वाले पर किसी भी बाहरी चीज या व्यक्तियों का असर नहीं होता। इससे ही धीरज, सेवा, शुद्धता, शांति, आज्ञा मानने, इंद्रिय संयम व मेहनत के भाव पनपते हैं।
इन बातों से तनाव कम, प्रेम ज्यादा और काम बेहतर होगा। सूत्र यही है कि पहले खुद मनुष्य बनों फिर दूसरों को मनुष्य बनाने में मदद करो। शासन करने के बजाए पहले खुद अनुशासित रहने की सोच रखें। लड़कियां भी सीता-सावित्री की तरह पवित्र जीवन जिएं।
स्वार्थी नहीं सेवक बनें- प्रेम ही जिंदगी व स्वार्थ मृत्यु है। इसलिए जिनको सेवा करने की चाहत हैं वे सारे स्वार्थ, खुशी, गम, नाम व यश की चाहतों की पोटली बनाकर समुद्र में फेंक करें। इस तरह सेवा के लिए त्याग व त्याग के लिए स्वार्थ छोडऩा जरूरी है। यानी निस्वार्थ होने से ही धर्म की परख होती है।
स्वार्थी सारे देव दर्शन, तीर्थयात्रा करने पर भी करे तो भगवान के निकट नहीं रह पाता। क्योंकि भक्ति का निचोड़ ही पावन होना और परोपकार करना है। गरीब, कमजोर व बीमारों की सेवा करने ये दोनों मकसद पूरे होते हैं।
आत्मत्याग व सेवा की अहमियत समझने के लिए याद करें कि जिन दीन-दुखियों के लिए भगवान ने कई अवतार लिए तो इंसान होकर क्यों न अपना जीवन भी न्यौछावर करें।
आत्मशक्ति को पहचाने और जगाएं- नाकामियों से बेचैन होने या थोड़ी सी कामयाबी से संतुष्ट होकर बैठने के बजाए लगातार आगे बढें। स्वामीजी का सूत्र वाक्य उठो, जागो और लक्ष्य पाने तक नहीं रुको, यही सबक देता है, जो आत्मशक्ति को जगाने से मुमकिन है।
आत्मशक्ति को जगाने के लिए बाहरी और भीतरी चेतना को कर्म, उपासना, संयम व ज्ञान में कोई भी एक या सभी को जरिया बना वश में करें और आत्मा रूपी ईश्वरीय भाव को उजागर करें।
इसे ही जिंदगी का अहम लक्ष्य मानकर "आत्मानो मोक्षार्यं जगद्धिताय च" की भावना के साथ खुद के साथ दूसरों को भी जीवन की सार्थकता और मुक्ति की राह बताएं।
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